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कविता

हिमालय

आस्तीक वाजपेयी


हिमालय की बहती मिट्टी,
पर सवार गंगा प्रयाग जा रही है
आसमान में उड़ती चील के टूटे पंख से
मिलने।
एक पत्ती पर
पंख अटक गया है।
जो ओस उसे रोके है
वह गिर पड़ेगी उसे लिए।
शंकर की चोटी ढीली हो गई।

 


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